मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिये:- मदन चावला

फरीदाबाद:08 मई, 8 मई, यानी “अंतर्राष्ट्रीय थैलेसीमिया दिवस’, विश्व भर में हर वर्ष थैलेसीमिया से सम्बंधित संस्थाओं व संस्थानों द्वारा मनाया जाता है। इसे मनाने का मूल उद्देश्य उन थैलेसीमिया के मरीजों को याद करना है जो आज हमारे बीच नहीं रहे, उन सभी थैलेसीमिया ग्रस्त लोगों के चेहरे पर खुशियाँ लाने के लिये जो इस रक्त्त विकार का डटकर सामना कर रहे हैं, उन वैज्ञानिकों व डॉक्टरों का आभार प्रकट करना है जो इस विषय में लगातार अनुसंधान करने में जुटे हैं ताकि इस रोग का उपचार और बेहतर व आसान हो सके, एवं उन सभी संस्थाओं व शख्सियतों को प्रोत्साहित करना है जो इस सम्बंध में अपनी अद्भुत सेवायें दे रहे हैं।

इस विषय पर मदन चावला, संस्थापक, ग्लोबली इंटीग्रेटिड फॉउंडेशन फॉर थैलेसीमिया (गिफ्ट) से वार्तालाप के कुछ अंश।

कोरोना का थैलेसीमिया पर क्या प्रभाव है?

कोरोना के चलते लोग अक्सर रक्त्तदान करने से घबराते हैं। हालांकि वर्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन द्वारा यह स्पष्ट किया जा चुका है और हमारी संस्था गिफ़्ट भी लगातार जागरूकत फैला रही है कि इस दौरान रक्त्तदान सुरक्षित है, परन्तु फिर भी रक्त्तदान शिविर की संख्या में बहुत गिरावट आई है, जिसके फलस्वरूप ब्लड बैंक में रक्त्त की बहुत कमी हो रही है और थैलेसीमिया के रोगियों को ब्लड ट्रांसफ्यूजन के लिये दिक्कतें आने लगी हैं।

5 मई 2021 को स्वास्थ्य व परिवार कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार ने संशोधित दिशा निर्देश जारी किये हैं। इनके अनुसार अब कोविड की वैक्सीन (चाहे वो पहली डोज़ हो या दूसरी) लगवाने के 14 दिन बाद आप रक्त्तदान कर सकते हैं। पुरानी गाइडलाइन्स के अनुसार यह अवधि 56 दिन की थी। हम आशा करते हैं कि अब रक्त्तदान में सकारात्मक फर्क पड़ेगा।

क्या थैलेसीमिया के रोगियों को कोविड की वैक्सीन लगवानी चाहिये?

जी बिल्कुल। 18 वर्ष के ऊपर आयु वर्ग के सभी थैलेसीमिया के रोगियों को कोविड की वैक्सिन लगवानी चाहिये। थैलेसीमिया इंटरनेशनल फेडरेशन, सायप्रस (यूरोप) ने यह बहुत पहले ही कह दिया था कि थैलेसीमिया के रोगियों को तो यह वैक्सीन प्रार्थमिता पर लगनी चाहिये, परन्तु हर देश की सरकार ने वैक्सीन लगाने के लिये अपने देश के विशेषज्ञों की राय व सीमित संसाधनों आदि के मद्देनज़र अपनी योजनायें बनाईं, और उन्हीं के हिसाब से सबका टीकाकरण किया जा रहा है।

कोरोना महामारी के दौरान थैलेसीमिया रोगियों को कोई ख़ास हिदायत?

थैलेसीमिया के रोगी अक्सर इम्मयुनिटीकॉम्प्रोमॉयस्ड (प्रतिरक्षा में अक्षम) होते हैं, या कोमॉरबिडिटीज़ (सहरुग्णता, यानी एक बीमारी के साथ अन्य बीमारियों) के भी शिकार होते हैं, इसीलिए इन रोगियों को संक्रमण का खतरा अपेक्षाकृत ज़्यादा हो सकता है। अतैव, कोरोना के चलते इनके लिये अपना विशेष ख्याल रखना उचित है।

सभी थैलेसीमिया के रोगियों के लिये आवश्यक है कि वो निरन्तर अपने डॉक्टर (रक्त्त विकार विशेषज्ञ) के संपर्क में बने रहें, और केवल डॉक्टर की सलाह के अनुसार ही दवाइयों का सेवन करें व अपने टैस्टस करवायें। निर्धारित समय पर अपना ब्लड ट्रांसफ्यूज़न करवायें व अपने हीमोग्लोबिन स्तर को 9.5 ग्राम प्रति डेसीलिटर से ऊपर ही बनाये रखें। जब तक अति आवश्यक ना हो, घर से बाहर ना निकलें। भीड़भाड़ के इलाकों में जाने से बचें। मास्क, सैनिटाइज़र, दो गज़ की दूरी व सरकार द्वारा जारी अन्य हिदायतों का पूर्णरूप से पालन करें।

गिफ्ट फॉउंडेशन की कार्यपद्धति क्या है व कोरोना के कारण इसमें कुछ बदलाव किये गये?

गिफ्ट की कार्यपद्धति मुख्यतः 3 धाराओं पर आधारित है। (1) कंट्रोल – यानी, थैलेसीमिया पर नियंत्रण, (2) केयर – यानी, रोगियों का ख्याल व रोग समन्धित उनकी ज़रूरतों की आपूर्ति, व (3) क्योर – यानी, थैलेसीमिया के रोगियों का स्थाई इलाज। फॉउंडेशन तीनों सुनिश्चित धाराओं पर सकारात्मक कार्य करती हुवे, अपनी सेवाओं के स्तर को निरन्तर सुधारने व उन्हें और बढ़ाने व अधिकतम लोगों तक पहुंचाने हेतु प्रतिक्षण प्रयासरत है।

कोरोना काल के हालातों को देखते हुवे विशेषतौर पर संस्था के महत्वपूर्ण केन्द्रबिन्दु हैं कि थैलेसीमिया के रोगियों के रक्त्त आधान के लिये रक्त्त की कमी ना हों, सभी को पूरी दवाइयाँ उपलब्ध हो सकें, व उन्हें डॉक्टर्स की अत्यंत आवश्यक सलाह से वंचित ना रहना पड़े।

सरकार से थैलेसीमिया के प्रति आपकी कोई उम्मीदें व माँगे?

निस्संदेह सरकार की ओर से थैलेसीमिया के प्रति कई क़ाबिले तारीफ कदम उठाये गये हैं, जिनमें थैलेसीमिया रोगियों को “दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम 2016” में शामिल कर उन्हें इस अधिनियम के तहत सभी प्रावधानों का फायदा देना, देश के सभी ब्लड बैंक्स में थैलेसीमिया रोगियों को निशुल्क रक्त्त मिलने का प्रावधान करना आदि मुख्य हैं।

हमारी सरकार से प्रार्थना है कि वो रक्त्त विकार विशेषज्ञ डॉक्टर्स की उपलब्धता का इस प्रकार से इंतज़ाम करे कि सभी ज़रूरतमंद थैलेसीमिया रोगियों को डॉक्टर से एक न्यूनतम अवधि (जैसे एक माह) में मिलने का अवसर अपने नज़दीकी सरकारी अस्पताल में अवश्य मिल सके। इसके अतिरिक्त सरकार को सुरक्षित रक्त्त (नैट, यानी न्यूक्लिक ऐसिड एम्प्लीफिकेशन टैस्टिंग् वाला) उपलब्ध करवाने पर ध्यान देना चाहिये। कीलेशन (शरीर से अतिरिक्त लौहतत्व निकालने) की आवश्यक दवाइयों की सभी थैलेसीमिया रोगियों तक पहुँच बढ़ानी चाहिये। विवाह से पूर्व सभी युवक युवतियों के लिये थैलेसीमिया कैरियर स्क्रीनिंग अनिवार्य करने के लिये कोई अधिनियम पारित करना चाहिये व इस स्क्रीनिंग/टेस्ट को सरकारी अस्पतालों में निशुल्क या न्यूनतम दर पर करवाना चाहिये। स्टैम सैल ट्रांसप्लांट की लागत को बहुत कम करना चाहिये ताकि आर्थिक रूप से वंचित वर्ग को लाभ हो। हम अपने सुझाव सरकार तक विभिन्न मंचों व माध्यमों के ज़रिये पहुँचा रहे हैं।

लॉकडाउन के चलते इस वर्ष आपकी अंतर्राष्ट्रीय थैलेसीमिया दिवस मनाने की क्या योजना है?

इस वर्ष हम यह उत्सव एक वर्चुअल (ऑनलाइन) मंच पर, फोर्टिस मैमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट गुरूग्राम के साथ मनायेंगे। कार्यक्रम का नाम है “धुन”, और यह बॉलीवुड के म्यूज़िक व नृत्य पर आधारित है। इसमें भाग लेने हेतु देश विदेश के सभी थैलेसीमिया फाइटर्स व आमजन आमंत्रित हैं।

हमारे पाठकों व जनसाधारण के लिये कोई विशेष सन्देश?

हमारा विश्वास है कि अगर भारतवर्ष पोलियो मुक्त्त हो सकता है, तो थैलेसीमिया मुक्त्त भी हो सकता है। हम सबको थोड़ी समझदारी दिखानी होगी और अपने देश की युवापीढ़ी को विवाह से पूर्व अपना थैलेसीमिया कैरियर / माइनर टैस्ट करवाने के लिये जागरूक व प्रेरित करना होगा। यह मिशन सरकार, मीडिया, इस विषय पर कार्यरत संस्थाओं व जनसाधारण की भागीदारी से ही पूरा हो सकता है।

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